अलंकार की परिभाषा-
अलंकार की
परिभाषा हम
संस्कृत के
विद्वानों द्वारा
बताएं तो
– ‘अलंकरोति इतिः अलंकारः’ अर्थात
जो अलंकृत करे
या किसी रचना
की शोभा
बढ़ाये या
काव्य की
सुंदरता बढ़ाये उसे अलंकार कहते
हैं।
अलंकार के प्रकार –
अलंकार मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार की परिभाषा –
“जिस
अलंकार में
शब्दों के
माध्यम से
चमत्कार उत्पन्न
होता है
उसे शब्दालंकार
कहते है
| जैसे
अनुप्रास , यमक
, श्लेष
, वक्रोक्ति
, पुनरुक्ति
आदि |
अनुप्रास अलंकार -
जहाँ एक
ही वर्ण
की आवृत्ति लगातार
कई बार
होती है
उसे अनुप्रास
अलंकार होता
है |
( वर्ण
की आवृत्ति
शुरुआत में
या अंत
में )
उदा
० –
जय
जय
भारत
भूमि
भवानी
,
अमरों
ने
भी
तेरी
महिमा
बारम्बार
बखानी
|
या
- जन
रंजन
मंजन
दनुज
मनुज
रूप
सुर
भूप
।
अनुप्रास अलंकार – इसके 5 भेद होते है –
1)
छेकानुप्रास
2)
वृत्यानुप्रास
3)
लाटानुप्रास
4)
अन्त्यानुप्रास
5)
श्रुत्यानुप्रास
छेकानुप्रास अलंकार – “ जहाँ कोई वर्ण लगातार दो बार आए वहां
छेकानुप्रास अलंकार होता है |”
उदा
० १.
सूर समर करनी करहिं |
२. चारू चंद की चंचल किरणे खेल रही है जल थल में
|
वृत्यानुप्रास अलंकार - “ जहां एक वर्ण कई आवृत्ति लगातार दो से अधिक
बार होती है |”
अथवा - “जहां
एक वर्ण की आवृत्ति तीन या तीन से अधिक बार होती घी वहां वृत्यानुप्रास अलंकार
होता है |”
उदा
० १. भूरी –
भूरी भेद भाव भूमि से भाग दिया |
२. तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए
|
लाटानुप्रास अलंकार -
“ जब
किसी वाक्य की या उपवाक्य की आवृत्ति उसी अर्थ में होती है किन्तु उसके मूल अर्थ
में अंतर होता है वहां लाटानुप्रास
अलंकार होता है |
उदा
० राम भजन जो करत नहिं , भाव
बंधन भय ताहि |
राम भजन जो करत ,
नहिं भाव बंधन भय ताहि |
या
– मांगी नाव , न केवट आना |
मांगी नाव न, केवट आना |
अन्त्यानुप्रास अलंकार –
जब किसी पंक्ति में अंतिम अक्षर की आवृत्ति लगातार होती
है, वहां अन्त्यानुप्रास
अलंकार होता है |
उदा
० प्रभु जी तुम दीपक हम बाती |
जाकी जोति बरे दिन राती ||
श्रुत्यानुप्रास अलंकार –
“ जब
एक ही वर्ग ( माधुर्य वर्ग – त थ द ध न ) के वर्णों की
आवृत्ति बार – बार होती है ,उसे
श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है |
उदा
० १. ता दिन दान दीन्ह धन धरनी |
२. दिनांत था,
थे दिननाथ डूबते। साधेनु आते गृह ग्वाल-बाल थे।।
श्लेष अलंकार –
“ जब
कोई शब्द एक ही बार प्रयोग में आया हो किन्तु प्रसंग के अनुसार ( घटना ) उसके दो
या दो से अधिक अर्थ हों , वहां श्लेष अलंकार होता है|”
उदा०
–
a. पानी
गए ना ऊबरै , मोती मानुष चून | ( पानी – चमक , सम्मान , जल )
b. सुबरन
को खोजत फिरे, कवी व्यभिचारी चोर | ( शब्द , स्त्री
, स्वर्ण )
यमक अलंकार –
जब कोई शब्द दो या दो से अधिक बार प्रयोग में
आया हो , तथा हर बार उसके अर्थ अलग
- अलग हो , वहां यमक अलंकार होता है |
उदा०
–
“ तौ पर वारो उरबसी ,
सुन राधिके सुजान |
तू मोहन के उरबसी , हवै उरबसी समान ||”
(
उरबसी – इस नाम की अप्सरा ,
हृदय में बसना , आभूषण )
या
– कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा
खाए बौराय जग, या पाए
बौराय॥ (कनक -
धतूरा , सोना )
या
– सबकी बेगम बेगम हैं | ( बेगम – पत्नी , विना गम के )
वक्रोक्ति अलंकार –
जब किसी वाक्य में वक्ता के कथन का आशय किसी
दुसरे अर्थ से लिया जाता है , वहां
वक्रोक्ति अलंकार होता है | ए दो प्रकार के होते है - –
( क ) काकु वक्रोक्ति ( ख)
श्लेष वक्रोक्ति |
क) काकु
वक्रोक्ति –
काकू
वक्रोक्ति में वक्ता कहता कुछ और है ,
किन्तु कंठ की आवाज के कारण अथवा अज्ञानता के कारण श्रोता सुनता कुछ और है |
उदा०
देते है वरदान शिव भाव चाहिए मीत |
भोले को वरदान हित भाव चाहिए मीत ?
एक ने कहा- शिव
वरदान देते हैं किन्तु मन में भाव होना चाहिए।
दूसरा बोला-
भोले को भी वर देने के लिए भाव चाहिए?
ख) श्लेष वक्रोक्ति –
इसमें श्रोता जान बूझकर वक्ता के कथन का दूसरा
अर्थ निकालता है , वह जनता है कि वक्ता के कहने का अर्थ क्या है फिर भी वह उसका अर्थ उल्टा
ही लेता है |
उदा०
- ’
’कौन तुम ? मैं घनश्याम।
तो बरसो कित जाय।।’’
’’कौन तुम ? मैं घनश्याम।
तो बरसो कित जाय।।’’
अर्थालंकार –
अर्थालंकार में काव्य में उसके अर्थ में चमत्कार उत्पन्न होता है |
उपमेय
– वह मुख्य वस्तु जिसके
विषय में बात हो रही है | ( मानव शरीर के अंग व भावनाए )
उपमान
– वह वस्तु जिससे मुख्य
वस्तु की तुलना हो रही है |
( प्राकृतिक वस्तु )
उदा०
सीता का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है |
उपमेय – मुख
उपमान
– चंद्रमा
उपमा अलंकार –
“ जहाँ
उपमेय में उपमान की समानता बताई जाय |” अर्थात जहाँ मुख्य
वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के जैसा या उसके सां बताया जाता है वहां उपमा अलंकार
होता है |
पहचान
– पंक्ति में सा , सी , सो , सम , सरिस , जैसा तुल्य आदि शब्दों प्रयोग मिलता है |
उदा०
- सागर –
सा गंभीर ह्रदय हो , गिरि – सा ऊँचा जिसका मन |
राधा बदन चन्द्र - सो सुन्दर |
रूपक अलंकार –
“ जहां
उपमेय में उपमान का आरोप किया जाए | “ अर्थात जब मुख्य वस्तु उपमान का रूप ले ले
वहां रूपक अलंकार होता है |
पहचान
– उपमेय के साथ अर्थ में –
रुपी शब्द का प्रयोग करते
है | ( शब्द के बीच
में योजक चिन्ह दिखाई देता है )
उदा०
पायो जी मैंने राम रतन –
धन पायो |
चरण –
कमल बंदौ हरि राई |
मैया मैं तो चन्द्र - खिलौना लैहौं |
उत्प्रेक्षा
अलंकार –
पहचान
– (जानो , मानो , मानहु , ज्यों , यों आदि )
उदा० सोहत ओढ़े पीट –
पातु, श्याम सलौने गात |
मानो नीलमणि सैल पर ,
आतप परयो प्रभात |